Dear
Friends,
I wrote the
following poem during my visit to L&T cement plant in 1986
That was
when CSR was a " matter of heart " and before Govt reduced it to a
" matter of law "
I hope you
enjoy it
with
regards,
hcp
(M) 0 -
98,67,55,08,08
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आओ , पकडलो हाथ
आवारपुर
उठो ,
अभी तो बहुत लम्बी सफर बाकी हैं
क्यूंकि
अभी भी तुम्हारी छावं में
बैलो की जगह खेत में ,
बच्चे जूते जाते हैं !
तुम महान हो ,
तुम्हारे कंधो पर
देश की जिम्मेवारी हैं !
तुम्हे देखना है की
तुम्हारे पुर्जे कभी बंध हो न पावे ,
तुम्हारी मशीने
कभी सो न जावे !
मगर इन ऊंचाईओ से
जिसके कंधे पर तुम खड़े हो ,
उनकी आवाज़ भी तो सुननी है !
तुम्हारी छाव में अभी भी ,
कई माँ ए
बच्चे को रोटी के बदले
कहानी सूना के सूला देती है !
तुम्हे अभी
लम्बी सफर तय करनी है !
आओ , पकडलो हाथ
बिना जिनके साथ ,
तुम अकेले चल नहीं पाओंगे ;
तुम्हारे जो हमसफ़र है
उन्हें छोड़के
क्या आगे बढ़ पाओंगे ?
सुनहरी कल के सपने
देखने वालो , हम सब है ;
रात भर सोनेवाले भी
हम सब है ;
उठो , भयी भोर
और चल दो
इक नयी क्षितिज की और !
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05 March 1986 / #
www.hemenparekh.in / Poems ( hindi )
अभी तो बहुत लम्बी सफर बाकी हैं
क्यूंकि
अभी भी तुम्हारी छावं में
बैलो की जगह खेत में ,
बच्चे जूते जाते हैं !
तुम महान हो ,
तुम्हारे कंधो पर
देश की जिम्मेवारी हैं !
तुम्हे देखना है की
तुम्हारे पुर्जे कभी बंध हो न पावे ,
तुम्हारी मशीने
कभी सो न जावे !
मगर इन ऊंचाईओ से
जिसके कंधे पर तुम खड़े हो ,
उनकी आवाज़ भी तो सुननी है !
तुम्हारी छाव में अभी भी ,
कई माँ ए
बच्चे को रोटी के बदले
कहानी सूना के सूला देती है !
तुम्हे अभी
लम्बी सफर तय करनी है !
आओ , पकडलो हाथ
बिना जिनके साथ ,
तुम अकेले चल नहीं पाओंगे ;
तुम्हारे जो हमसफ़र है
उन्हें छोड़के
क्या आगे बढ़ पाओंगे ?
सुनहरी कल के सपने
देखने वालो , हम सब है ;
रात भर सोनेवाले भी
हम सब है ;
उठो , भयी भोर
और चल दो
इक नयी क्षितिज की और !
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05 March 1986 / #
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